________________ आसेवणाएँ जायइ जं च विरागो तओ सुहज्झाणं / पासवणादि व्व तओ कायठिती होति कातव्वा // 960 // णियमे वि तासि-न फलं पीडाभावातो कस्सइ तहा वि / तस्स करणे ण कीरति दिक्खाणियमो वि चितमिदं // 961 // पासवणाईण तहा किनो णियमो त्ति, देहपीडाओ ? / इतरनिवित्तीएँ तई किं णो तह गेहिमादीया ? // 962 // तम्हा रागादिविवज्जिएण पासवणमादिकिरिय व्व / वेदम्मि उदिन्नम्मी थीपडिसेवा वि कायव्वा // 963 // एवमिह कम्मगुरुणो मिच्छादिट्ठी अणारिया केई / इंदियकसायवसगा मग्गं नासेंति मंदमती / / 964 // सपरोभयपावातो रागादिपसत्तिओ दढतरागं / सुहझाणाभावातो जलणिधणखेवणातेणं // 965 // नियमा पाणिवहातो तप्पडिसेवातो चेव इत्थीणं / पडिसेवणा ण जुत्ता मोक्खत्थं उज्जयमतीणं // 966 // सव्वागमप्पसिद्धं मेहुणभावम्मि पावमच्चत्थं / तह परमसंकिलेसो अणुहवसिद्धो उ सव्वेसिं // 967 // पामागहितस्स जहा कंडुयणं दुक्खमेव मूढस्स। पडिहाइ सोक्खमतुलं एवं सुरयं पि विनेयं // 968 // जह तक्करणे दोण्ह वि तीए वुड्डी तओ य देहस्स / / होइ विणासो एत्थ वि तह नेओ सुगइदेहस्स // 969 // मोहग्गिसंपलित्तं तं अप्पाणं च विज्झवेऊण / एवं सुहभावो च्चिय हंतासिद्धो मुणेयव्वो // 970 // पडिसेवणे वि तस्सा अहिया रागादयो उ नियमेणं / अन्नेसि तदभावे वि पतणुया चेव दीसंति // 971 //