________________ सइ चरणविग्घमउलं उस्सुगमेवं नियत्तइ ण. जाउ / ता तन्निवित्तिपवणो वज्जेज्जा इस्थिपरिभोगं // 972 // उस्सगविणिवित्ती वि य जा सम्मन्नाणपुब्विगा होति / सा सुंदरा ण जाऽहियविसयपवित्तीऍ लोए वि // 973 // जह चेव कुट्ठिणोऽपत्थवत्थुविसयं ण तस्स जोगेणं / भदं नियत्तमाणं उस्सुगमेवं, इमं पिं त्ति // 974 // आसेवणाएँ एवं सुहझाणाभावतो अजुत्तमिणं / पासवणादि व्व तओ कायठिती होइ कायव्वा // 975 // . आसेवणाए तिस्सा तग्गयचिंतावियावियो होइ। .. मोहसहावातो जओ कत्तो झाणं सुहं तस्स ? // 976 // किंच विवेगप्पभवं तयं ति थीविंग्गहे वि य पवित्ती। ." कलिमलभरिए जस्स उ तस्स विवेगो कहं अत्थि ? // 977 // न य भावमंतरेणं तत्थ पवित्ती तओ धुवो रागो / तब्भावम्मि य इहई बीयपदं नंत्थि नियमेणं . // 978 // पाणिवहो वि य नियमा इत्थीजोणी जतो अजोणीहि / पाणिहिं घणसंसत्ता परिभोगे तेसि वावत्ती // 979 // जह उ किरि(र)णालिगाए धणियं मिदुरूयपोम्हभरियाए / तदभावं कुणमाणो तत्तो कणगो तहिं विसइ // 980 // इय घणसंसत्ताए जोणीए इंदियं पि पुरिसस्स / तदभावं कुणमाणं नियमा विसइ त्ति विनेयं // 981 // पडिसिद्धो य तओ जं सव्वेहि वि धम्मसत्थयारेहिं / . तप्पडिसेहाओ तओ सफलो नियमो भवे तासि // 982 // एवं च पयइसावज्जओ इहं इथिभोगपडिसेहो। . जुत्तो निरवज्जत्ता नतु दिक्खादीण भावाणं // 983 // 82