________________ अह उ उवक्कमिज्जति आऊ मरणम्मि इह वि तस्सेव / लाभंतराइयं जं दव्वादी पप्प उदयादी || 948 // उदयक्खयक्खओवसमोवसमा एवऽत्थ कम्मुणो भणिता / दव्वं खेत्तं कालं भवं च भावं च संपप्प // 949 // ता एत्थ सो निमित्तं दोण्ह वि भावाण जेण गुणदोसा / जुजंति तेण तप एवं खलु संगतं उभयं // 950 // जइ एवं धणनासे तओ निमित्तं ति तस्स दोसो उ। अह णो निमित्तमिहई इतरत्थ तयं ति का जुत्ती ? // 951 // इय वत्थुसहावं जाणिऊण सुमणो उ णो पयट्टेज्जा / . . चोरियभावे तह या बीहेज्ज कलंकमरणातो // 952 // हरिऊण य परदव्वं पूयं जो कुणइ देवतादीणं / दहिऊण चंदणं सो करेइ अंगारवाणिज्ज' // 953 // लोगम्मि य परिवादं कुकम्मपडिसेहणेण रक्खेज्जा / / तह रक्खियम्मि नियमा परलोए नत्थि किंचि भयं .. // 954 // गहितो य अमोक्खाए निच्चं चिय एत्थ मरणकेसरिणा / सव्वो जीवो तम्हा करेज्ज सइ उभयलोगहियं // 955 // केई भणंति पावा इत्थींणासेवणं न दोसाय / सपरोवगारभावाद(दुस्सुगविणिवित्तितो चेव // 956 // तत्तो सुहझाणातो पासवणुच्चारखेलणातेणं / नियमस्स निप्फलत्ता अतिप्पसंगाउ अवि य गुणो // 957 // मोहग्गिसंपलितं तं अप्पाणं च विज्झवेऊणं / सुहभावातो सपरुवगारो कह होइ दोसाय ? // 958 // सव्वद्धा विग्धकरं चरणस्सासेवणं विणा तीए / . .. कह णु निवत्तति पावं उस्सुगमिह सुप्पसिद्धमिणं // 959 //