________________ ता इय सुहबज्झगतो संविग्गस्स जयणापवत्तस्स / जिणभवणकायघाते परिणामो होइ जीवस्स // 876 // न य सोऊण पयत्थं जं किंचि जहाकहचिसाधम्मा / चासप्पंचाससमा अवरम्मि पगप्पणा जुत्ता .. // 877 // जायइ अतिप्पसंगो एवं भावाण ण य ववत्थ त्ति / तदभावे सत्थं पि हु विहलंति विडंबणा सव्वं . // 878 // ण य इह वेदवहम्मी दीसइ गुण मो पदाणमह इटुं। वहमन्तरेण तं किं संपति लोए ण संभवति ? // 879 // वज्झाण वि उवगारो इहं अदिट्ठो उ पेच्च अपमाणो / फलमवि वभिचारातो ण पमाणं एत्थ विदुसाणं // 880 // एवं विहिसक्कारो एत्थ. असिद्धो तु होति नायव्यो / तदभावम्मी य साहणविगला सव्वे वि दिटुंता // 881 // अह मंतपुव्वगं चिय आलभणं सव्वहा पयत्तेणं / विहिसक्कारो भन्नति तेसि पि इहेव वभिचारो // 882 // वीवाहे तह गब्भाहाणे जणणे य मंतसामत्थं / / दिटुं विसंवयंतं विणा वि तं संवयंतं च // 883 // अह तत्थ विसंवादो किरियावेगुन्नतो ण माणमिह / किं किरियावइगुण्णा ? किं वा तदसाहगत्तेणं ? // 884 // तेसिं फलेण सिद्धे अविणाभावम्मि जुज्जई एयं / न य सो सिद्धो जम्हा विणा वि तं तस्स भावो त्ति // 885 / / सत्थत्थम्मि वि एवं न होइ पुरिसस्स एत्थ माणमिणं / " जं खलु दिट्ठविरोहो गम्मति तेणं अदितु वि. // 886 // अह अत्थवादवक्कं एतं एक्को वि जह नमोक्कारो। सत्थत्थो होइ विही जह मोक्खो नाणकिरियाहिं / // 887 //