________________ तह दाहगो वि अग्गी सच्चादिपभावतो न दहइ त्ति / इय विहिसक्कारातो हिंसा वि तई न दोसाय // 864 // सत्थत्थमि य एवं न होइ पुरिसस्स एत्थ किं माणं? / न य कुच्छिता तई जं जयमाणा लोगपुज्ज त्ति // 865 // दिटुंतबला एवं वदंति मुद्धजणविम्हयकरं ते / तेण समं वेधम्मं असाहगमिणं न पेच्छन्ति // 866 // अयपिंडे भावंतरभावो पच्चक्खसंपसिद्धो उ। . तणुरूवो न य दीसइ पसुम्मि सो वेदविहिणा वि // 867 // देवत्तं से भावतरं ति किं तस्स गाहगं माणं ? / सिय आगमो न सो च्चिय विवादविसयो जतो एत्थ // 868 // परिणामविसेसातो पुढवादिवहीं वि अह जिणायतणे / भणिओ गुणाय एवं वेदवहो हंत किन्न भवे? // 869 // परिणामविसेसो वि हु सुहबज्झगतो मतो सुहफलो त्ति / ण उ इतरो मेच्छस्स उ जह विप्पं घाययंतस्स // 870 // ण य सो सुहबज्झगतो वेदवहे हवति जो उ परिणामो / मोत्तूण आवइगुणं पंचिंदियघायहेतूओ . // 871 // सइ सव्वत्थाभावे जिणाण भावावयाएँ जीवाणं / तेसि नित्थरणगुणं पुढवादिवहे वि आयतणं // 872 // साहुणिवासो तित्थगरठावणा आगमस्स परिवुड्ढी / एक्केकं भावावइनित्थरणगुणं तु भव्वाणं // 873 // साहुणिवासा सद्धम्मदेसणा धम्मकायपरियरणं / तित्थगरठावणातो परमगुरुगुणागमो भणितो // 874 // सज्झायझाणकरणे आगमपरिवड्डणं ततो नियमा / रागादीण पहाणं ततो य मोक्खो सदासोक्खो // 875 // 73