________________ जं सामिकालकारणविसयपरोक्खत्तणेहिं तुल्लाई। तब्भावे सेसाणि य तेणाईए मतिसुताई. // 852 // मतिपुव्वं जेण सुयं तेणादीए मती विसिट्ठो वा / मतिभेदो चेव सुतं तो मतिसमणंतरं भणियं . // 853 // कालविवज्जयसामित्तलाभसाहम्मतोऽवही तत्तो / .. माणसमेत्तो छउमत्थविसयभावादिसामन्ना (धम्मा) . // 854 // . अंते केवलमुत्तमजतिसामित्तावसाणलाभातो / एत्थं च मइसुयाइं परोक्खमितरं च पच्चक्खं // 855 // चारित्तं परिणामो जीवस्स सुहो उ होइ विनेओ। लिंगं इमस्स भणियं मूलगुणा उत्तरगुणा य // 856 // पाणाइवातविरमणमादी णिसिभत्तविरतिपज्जंता / समणाणं मूलगुणा पत्नत्ता वीयरागेहिं / // 857 // सुहमादीजीवाणं सव्वेसि सव्वहा सुपणिहाणं / पाणाइवायविरमणमिह पढमो होइ मूलगुणो . // 858 // कोहादिपगारेहिं एवं चिय मोसविरमणं बितिओ / एवं चिय गामादिसु अप्पबहु(अदत्त)विवज्जणं तइओ // 859 // / दिव्वादिमेहुणस्स य विवज्जणं सव्वहा चउत्थो उ। पंचमगो गामादिसु अप्पबहुविवज्जणेमेव // 860 // असणादिभेदभिन्नस्साहारस्सा चउव्विहस्सावि / निसि सव्वहा विरमणं चरमो समणाण मूलगुणो // 861 // केई न वेदविहिता हिंसा दोसाय साहुसक्कारा / / दिटुं च तव्विसेसा अयपिंडादीण तरणादी // 862 // बुड्डइ जलि मुक्को अयपिंडो सक्कारिओ य तरइ त्ति / मारणसत्ती वि विसं साधु पउत्तं गुणं कुणति // 863 / /