________________ णत्तेगसहावत्ता आभिणिबोहादि किंकओ भेदो ? / . नेयविसेसाओ चे ण सव्वविसयं जतो चरमं // 828 // अह पडिवत्तिविसेसा गम्मि विऽणेगभेदभावातो।। आवरणविभेदो वि हु सहावभेदं विणा न भवे : // 829 // तम्मि य सति सव्वेसिं खीणावरणस्स पावती भावो। तद्धम्मत्तातो च्चिय जुत्तिविरोहा स चाणिट्ठो . // 830 // " अरहा वि असव्वन्नू आभिणिबोहादिभावतो नियमा / केवलभावातो चे सव्वन्नू णणु विरुद्धमिदं // 831 // चरमावरणस्स खओ पइसमयं चरमए व होज्जाहि ? / पतिसमये तब्भावे सगलो सो कस्स भेदो त्ति ? // 832 // अह सति वि तम्मि भावो ण तस्स पतिसमयमेव इट्ठो त्ति / कहमाभिणिबोहादिसु तब्भावे हंत भावो त्ति ? // 833 // सिय चरमए च्चिय खओ कह तीरइ एत्तियस्स काउंति ? / ण य पोग्गलाण समए अणंतकालं ठिती भणिता // 834 // तम्हा अवग्गहातो आरब्भ इहेगमेव णाणं ति / जुत्तं छउमत्थस्साऽसगलं इतरं तु केवलिणो . // 835 // णत्तेगसहावत्तं ओहेण विसेसओ पुण असिद्धं / एगंततस्सहावत्तणे उ कह हाणिवुड्डीओ ? / // 836 // जं अविचलियसहावे.णत्ते एगंततस्सभावत्तं / ण य तं तहोवलद्धा उक्करिसापकरिसविसेसा // 837 // तम्हा परिथूरातो निमित्तभेदातो समयसिद्धातो। . उववत्तिसंगओ च्चिय आभिणिबोहादिगो भेदो // 838 // घातिक्खयो निमित्तं केवलनाणस्स वनिओ समए / मणपज्जवनाणस्स उ तहाविहो अप्पमादो त्ति // 839 //