________________ तविहखओवसमतो तेसिमणूणं अभावतो. चेव / एवं विचित्तरूवं सणिबंधणमो मुणेयव्वं // 804 // किं चेहुवाहिभेदा दसहा वि इमं परूवियं समए / ओहेण तंपिमेसि भेदाणमभिन्नरूवं तु // 805 // तं उवसमसंवेगादिएहि लक्खिज्जए उवाएहिं / . आयपरिणामरूवं बज्झेहिं पसत्थजोगेहिं || 806 // एत्थ य परिणामो खलु जीवस्स सुहो उ होइ विडेओ / किं मलकलंकमुक्कं कणगं भुवि झामलं होइ ? // 807 / / पयईएँ व कम्माणं वियाणिउं वा विवागमसुहं ति / ... अवरद्धे वि न कुप्पइ उवसमतो सव्वकालं पि // 808 // नरविबुहेसरसोक्खं दुक्खं चिय भावतो तु मन्नतो / संवेगतो न मोक्खं मोत्तूणं किंचि पत्थेइ // 809 // नारयतिरियनरामरभवेसु निव्वेदतो वसति दुक्खं / अकयपरलोगमग्गो ममत्तविसवेगरहितो वि // 810 // दट्ठण पाणिनिवहं भीमे भवसागरम्मि दुक्खत्तं / अविसेसतो णुकंपं दुहा वि सामत्थतो कुणति // 811 // मन्नति तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पन्नत्तं / / सुहपरिणामो सव्वं कंखादिविसोत्तियारहितो // 812 // एवंविहपरिणामो सम्मदिट्ठी जिणेहिं पन्नत्तो।। एसो य भवसमुदं लंघइ थोवेण कालेणं // 813 // जं मोणं तं सम्मं जं सम्मं तमिह होइ मोणं ति। . निच्छयतो इतरस्स उ सम्म सम्मत्तहेऊ वि // 814 // पंचविहावरणखयोवसमादिनिबंधणं इहं नाणं / . . पंचविहं चिय भणियं धीरेहिं अणंतनाणीहिं . // 815 // Ge