________________ तह कम्मठितिक्खवणा परिमउई मोक्खसाहणे गुरुई / इह दंसणादिकिरिया दुलहा पायं सविग्घा य // 792 // अहव जओ च्चिय सुबहुं खवितं तो णिग्गुणेण सेसं पि। स खवेइ लभइ य जओ संमत्तसुयादिगुणलाभं // 793 // करणं अहापवत्तं अपुल्वमणियट्टिमेव भव्वाणं / इतरेसिं पढमं चिय भण्णइ करणं तु परिणामो // 794 // जा गंठी ता पढमं गठिं समइच्छतो अपुव्वं तु / अणियट्टीकरणं पुण संमत्तपुरक्खडे जीवे // 795 // संमत्तं पि य तिविहं खओवसमियं तहोवसमियं च / खइयं च कारयादि य (व) पन्नत्तं वीयरागेहिं // 796 // मिच्छत्तं जमुदिन्नं तं खीणं अणुदियं च उवसंतं / मीसीभावपरिणतं वेदिज्जंतं खओवसमं // 797 // उवसमियसेढिगयस्स होइ उवसामियं तु सम्मत्तं / जो वा अकयतिपुंजी अखवियमिच्छो लभइ सम्मं // 798 // खीणम्मि उदिन्नम्मि उ अणुदिज्जंते य सेसमिच्छत्ते / अंतोमुहुत्तमेतं उवसमसम्मं लभइ जीवो // 799 // ऊसरदेसं दड्डिल्लयं च विज्झाइ वणदवो पप्प / इय मिच्छस्स अणुदए उवसमसम्म लभइ जीवो // 800 // खीणे दंसणमोहे तिविहम्मि वि भवणिदाणभूयम्मि / निप्पच्चवातमतुलं सम्मत्तं खाइगं होति // 801 // जं. जह भणियं तं तह करेइ सति जम्मि कारगं तं तु / रोयग़संमत्तं पुण रुइमेत्तकरं मुणेयव्वं // 802 // सयमिह मिच्छट्ठिी धम्मकहाईहिं दीवति परस्स / / सम्ममिणं जेण दीवगं कारणफलभावतो नेयं // 803 //