________________ अह उ ससंवेदणसिद्धमेव णणु णिययमित्थ विनाणं / अत्थस्स दंसणं इय सिद्धं नणु सयललोगे वि // 684 // . अह विसया आगारो स उ णाणं अत्थभणियदोसातो। .. . सो कह णु तओ जुत्तो ? तहेव किं वा न बज्झाओ ? // 685 // अह उ अणागारं चिय विन्नाणं तह वि गाहगं तेसि / अत्थस्स वि एवं चिय गाहणभावम्मि को दोसो ? // 686 // सागारअणागारं तु विरोहा कह णु जुज्जती नाणं ? / . भावे वि तदंतरगहण मो फुडं अत्थतुल्लं तु // 687 // अणुभयरूवमभावो तब्भावे सव्वसुन्नतावत्ती। सा अणुहवसिद्धेणं विरुज्झती निययनाणेणं // 688 // माणे इमीऍ भावो विणा तयं जइ इमीऍ सिद्धि त्ति / तत्तो च्चिय अत्थस्स वि सिद्धीएँ निवारणमजुत्तं // 689 // न य सो उवलद्धिलक्खणपत्तो जमदरिसणे वि ता तस्स / तदभावनिच्छयो णणु एगंतेणं कुतो सिद्धो ? // 690 // अह सो परस्स एवं तदभावो तस्स चेव सज्झो वि (त्ति)। तुह आयनिच्छयो कह ? अजुत्तितो सा समा णाणे // 691 // न य णाणाण विरोहो सिद्धो अत्थस्स जणयतब्भावे / गम्मति इहराभावो सिद्धीए य कह तओ नत्थि? // 692 // गाहगपमाणविरहो एवं साधारणो उ नाणे वि / अत्थि य तं अत्थस्स वि सत्ता तह चेव अणिसेज्झा // 693 // किंच इहं नीलातो जायइ पीतादणेगधा णाणं / ण य तं अहेतुगं चिय को हेतू तस्स वत्तव्वं ? // 694 // आलयगता अणेगा सत्तीओ पागसंपउत्ताओ। जणयंति नीलपीतादिनाणमन्नो न हेतु त्ति // 695 // 58