________________ जो संवेगपहाणो अच्चंतसुहो उ होइ परिणामो / पावनिवित्ती य परा नेयं अन्नाणिणो उभयं // 540 // संसारासारत्ते सारत्ते चेव मुत्तभावस्स / विन्नाते संवेगो पावनिवित्ती य तत्तो उ // 541 // तम्हा परलोगसमुज्जतस्स भिक्खुस्स असढभावस्स / चरणोवगारगं इय णाणं सुत्तेविमं भणितं // 542 // / पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठति सव्वसंजए / अन्नाणी किं काही ?, किं वा णाही छेयपावगं? // 543 // इय कह नाणेण अलं जुज्जइ वयणं इमं असंगस्स ? / अण्णाणं चिय संगो कारणकज्जोवयारातो // 544 // तम्हा नाणी जीवो तं पि य परलोगसाहगं सिद्धं / नाणण्णाणविवेगे उवायमो चेव निरवज्जो // 545 // कत्त त्ति दारमहुणा कत्ता जीवो सकम्मफलभोगा। अस्स य अणब्भुवगमे लोगादिविरोहदोसो त्ति .. // 546 // दह्ण कंचि दुहियं सुहियं वा एव जंपती लोगो / भुंजति सकयफलं णय वडजक्खनिवासतुल्लमिणं . // 547 / / सुहदुक्खाणुहवातो चित्ताओ ण य अहेतुगो एसो / निच्चं भावाभावप्पसंगतो सकडमो हेतू // 548 // किन्न सहावो त्ति मई भावो वा होज्ज जं अभावो वा ! / जइ भावो किं चित्तो ? किं वा सो एगरूवो ति // 549 // जइ ताव एगरूवो निच्चोऽनिच्चो व होज्ज ? जइ निच्चो / कह हेतू सो भावो ? अह उ अणिच्चो ण एगो त्ति // 550 // अह चित्तो किं मुत्तो किं वाऽमुत्तो ? जइ भवे मुत्तो / ता कम्मा अविसिट्ठो पोग्गलरूवं जतो तं पि // 551 // 46