________________ अरहंतमादिवच्छल्लयादिजणितं अणुत्तरं पुण्णं / तित्थगरनामगोत्तं तस्सुदया देसणं कुणइ // .528 // ण य तं विधायगं केवलस्स भावे वि तस्स तो भगवं / सव्वनू कयकिच्चो पमाणमिह देसणाए य // 529 // चित्तत्थाऽवि य सद्दा तत्तो च्चिय समइया अणेगे तु / / सिद्धा तह चेव तओ न दूसणं होइ एवं पि // 530 // आयरियपरंपरओ पमाणमेयम्मि होइ अत्थम्मि। अस्स य अपमाणत्ते सव्वागमकिरियलोवो उ // 531 // अन्नाणिमतं पि इमं आगमघडियं व होज्ज इतरं वा ? | पढमम्मि परंपरओ माणं इतरम्मि तु ण जुत्तं // 532 // जइ वि ण आगमघडितं तहा वि उववन्नमेयमेवं ति (वत्ति)। णाऊण पवित्तीओ का उववत्ती तु अन्नाणे ? // 533 // अन्नाणओ वि दिट्ठा एत्थ पवित्ती किसादिएसुं ति / सफला य तीऍ वि‘फलं नाणातो चेव विनेयं // 534 // णणु संसया पवित्ती फलसंपत्ती य निच्छयाओ उ / धन्नादिणाणरहिओ न हि गहणादौ कुणइ जु(ज) तं // 535 // नज्जति य तविवक्खा अपच्चक्खत्ते वि तस्सभिप्पाओ / भणिओववत्तिओ च्चिय मिलक्खुणातं तओऽजुत्तं // 536 // परिणामो पुण तिव्वो पावपवित्तीए बंधहेउ त्ति / नत्थेत्थ विसंवादो णय जाणं कारणं एत्थ // 537 // अन्नाणिणो वि जम्हा दीसति एवं किलिट्ठभावस्स / शाणिस्स पवित्तीए वि तत्तो तु ण तारिसो भावो // 538 // जाणंतो विसखाणू पवत्तमाणो वि बीहई जह तु / ण उ इतरो तह नाणी पवत्तमाणो वि संविग्गो // 539 // 45