________________ अह अत्थमंतरेण वि भावा इतरम्मि किं न सो अत्थि? / अज्झारोवेण तओ एत्थ वि तीतादवेक्खाए // 432 // तं अन्नत्तविसिटुं समाणमेयंति एवमाईयं / जं जं निमित्तमिहई तं तं इतरम्मि वि समाणं // 433 // अच्चंताऽसाहारणगाहगमह तं ण एवमियरं ति / तस्सेवाभावातो एयं पि न जुत्तिपडिबद्धं गावातो गं पिन जत्तिपडिबदं // 535 // सत्तादीणं साधारणत्ततो अणुभवप्पसिद्धीतो / होज्ज व भावाभावो तेसिं अच्चंतभेदम्मि // 435 // जं एगम्मी सत्तं अन्नम्मि वि अह तु तस्स भावम्मि / पावइ एगत्तं चिय तेसिं तम्हा ठिओ भेदो // 436 // साधारणं ण एर्ग अवि समाणत्तणं ति ण य एतं / एगंताऽभेदम्मि वि जुज्जइ पच्चक्खसंसिद्धं // 437 // तम्हा तग्गहणाओ ततो पवित्तीओ लोगसिद्धीओ / सवियप्पं पच्चक्खं सिद्धं ति कयं पसंगेण // 348 // तह भावहेतवो च्चिय कुणंति पयईएँ णस्सरे भावे / जं भणियं तदजुत्तं अणेगदोसप्पसंगाओ.. // 439 // इय भावहेतवो च्चिय तन्नासस्सावि हेतवो नियमा / एवं च उभयभावो पावइ एगम्मि समयम्मि // 440 // तब्भावम्मि य भावो इतरस्स न जुज्जती उ भावे य।। तेणाविरोधतो पुण पावइ निच्चं पि तब्भावो // 441 // अह उ खणट्ठितिधम्मा भावो नासो न जुत्तमेयं पि / निरहेउगो स इट्ठो एसो य जओ सहेउ त्ति // 442 // अह मोत्तूण सहेउं अन्नं नावेक्खइ ति णिरहेऊ / . तुल्लमिणं इतरम्मि वि अत्थविसेसे वि धणिमेत्तं // 443 // 30