________________ दीसइ पच्चक्खं चिय एवं वक्कम्मि उज्जुए होंते / अंगुलिदव्वम्मि परं भावेतव्वं इहेक्केणं // 348 // वक्कत्तमंगुलीओ कहंचि अभिन्नं ति तीएँ जोगाओ / भिन्नं पि अवत्थंतरभावे तत्तो नियत्तीओ // 349 // तं चिय कहंचऽवत्थंतरे वि तं तुल्बुद्धितो हंदि / . एगंतेणऽन्नत्ते भिज्जेज्ज इमी वि तह चेव // 350 / / भिन्न च्चिय अवियप्पा एगंतेणेव एस तु विगप्पो / तुल्ल त्ति अप्पमाण गिहातगहणादिदोसाऔ // 351 / / न हु ता गिहीतगाही तस्साभावा तदाऽविसयतो उ। . अज्झारोवेण वि णो गेण्हइ तं तम्मि तदभावा // 352 // अत्तुल्लं अविगप्पं न य दिटुं भावतो जओ तं पि। ता कहमज्झारोवो नियमेणऽन्नस्स किं नेवं? // 353 // संकारविसेसातो सव्वमिणं हंदि तम्मि वि समाणं / जं सो वि लक्खणं वा होज्ज वियप्पो व ? किं. अन्न।। 354 // किंचोवादाणं से ? तं चिय जइ वत्थुणो कहमवत्थु ? / तं पि हु कहंचि वत्थु तो णावत्थू विरोहो वा // 355 // अह सो निव्विसओ च्चिय ण पयट्टइ किमिह छट्ठखंधे वि / तदंसणुत्तरद्धं च किं ततो तप्पवित्ती य? // 356 // जह अन्नमविसओ से इय तं पि ण जुज्जती ततो नियमा / तत्तो तम्मि पवित्ती संपत्ती चेव तेणेव // 357 // अह सो तप्पडिबद्धो वत्थावत्थूण को णु पडिबंधो ? / . सो वि हु कहंचि वत्थु तो नावत्थु विरोहो वा // 358 // तम्हा अवग्गहादी कहंचि भिन्नत्थगाहगा णेया / अणुहवसंधाणेणं एवं ववहारसिद्धीओ // 359 // 30