________________ // 14 // शीलांगविधिपञ्चाशकम् // नमिऊण वद्धमाणं सीलंगाई समासओ वोच्छं / समणाण सुविहियाणं गुरूवएसाणुसारेणं // 645 // सीलंगाण सहस्सा अट्ठारस एत्थ होंति णियमेणं / भावेणं समणाणं अखंडचारित्तजुत्ताणं // 646 // जोए करणे सण्णा इंदियभूमादिसमणधम्मे य / सीलंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स णिप्फत्ती // 647 // करणादि तिण्णि जोगा मणमादीणि उ हवंति करणाई / आहारादी सण्णा चउ सोयाइंदिया पंच // 648 // भोमादी णव जीवा अजीवकाओ य समणधम्मो उ / / खंतादि दसपगारो एव ठिए भावणा एसा // 649 // ण करेति मणेणाहारसण्णा विप्पजढगो उ णियमेण / सोइंदियसंवुडो पुढविकार्यआरंभ खंतिजुओ // 650 // इय मद्दवादिजोगा पुढविक्काए भवंति दस भेया / आउक्कायादीसु वि इय एते पिंडियं तु सयं // 651 // सोइंदिएण एयं सेसेहि वि जे इमं तओ पंच। आहारसण्णजोगा एत्थ इय सेसाहिं सहस्सदुगं // 652 // एवं मणेण वइमादिएसु एवं ति छस्सहस्साई / ण करइ सेसेहिं पि य एए सव्वे वि अट्ठारा // 653 // एत्थ इमं विण्णेयं अइदंपज्जं तु बुद्धिमंतेहिं / एक पि सुपरिसुद्धं सीलंगं सेससब्भावे // 654 // एक्को वायपएसोऽसंखेयपएससंगओ जह तु / एतं पि तहा णेयं सतत्तचाओ इहरहा उ // 655 // 259