________________ जम्हा समग्गमेयं पि सव्वसावज्जाजो(चा)गविरई उ। तत्तेणेगसरूवं ण खंडरूवत्तणमुवेइ - // 656 // एयं च एत्थ एवं विरतीभावं पडुच्च दट्ठव्वं / / न उ बझं पि पवित्तिं जं सा भावं विणा वि भवे // 657 // जह उस्सग्गम्मि ठिओ खित्तो उदयम्मि केणति तवस्सी / तव्वहपवत्तकायो अचलियभावोऽपवेत्तो तु // 658 // एवं चिय मज्झत्थो आणाओ कत्थई पयट्टतो / सेहगिलाणादट्ठा अपवत्तो चेव णायव्वो - // 659 // . आणापरतंतो सो सा पुण सव्वण्णुवयणओ चेव। ... एगंतहिया वेज्जगणातेणं सव्वजीवाणं // 660 // भावं विणा वि एवं होति पवत्तीण बाहते एसा / सव्वत्थ अणभिसंगा विरतीभावं सुसाहुस्स // 661 // उस्सुत्ता पुण बाहति समतिवियप्पसुद्धा वि णियमेणं / गीतणिसिद्धपवज्जणरूवा णवरं णिरणुबंधा . // 662 // इयरा उ अभिणिवेसा इयरा ण य मूलछिज्जविरहेण / होएसा एत्तो च्चिय पुव्वायरिया इमं चाहू // 663 // गीयत्थो य विहारो बीओ गीयत्थमीसओ भणितो / एत्तो तइयविहारो णाणुण्णाओ जिणवरेहिं // 664 // गीयस्स ण उस्सुत्ता तज्जुत्तस्सेयरस्स वि तहेव / णियमेण चरणवं जं ण जाउ आणं विलंघेइ // 665 // ण य तज्जुत्तो अण्णं ण णिवारइ जोग्गयं मुणेऊणं / . एवं दोण्ह वि चरणं परिसुद्धं अण्णहा णेव // 666 // ता एव विरतिभावो संपुण्णो एत्थ होइ णायव्वो। णियमेणं अट्ठारससीलंगसहस्सरूवो उ * // 667 // 20.