________________ एवंविहेसु पायं धम्मट्ठा णेव होइ आरंभो / गिहिसु परिणाममेत्तं संतं पि य णेव दुढे ति // 633 // तहकिरियाभावाओ सद्धामेत्ताओ कुसलजोगाओ। असुहकिरियादिरहियं तं हंदुचितं तदण्णं वा // 634 // न खलु परिणाममेत्तं पदाणकाले असक्कियारहियं / गिहिणो तणयं तु जई दूसइ आणाए पडिबद्धं . // 635 // . सिट्ठा वि य केइ इह विसेसओ धम्मसत्थकुसलमती / / इय न कुणंति वि अणडणमेवं भिक्खाएँ वतिमेत्तं // 636 // दुक्करयं अह एयं जइधम्मो दुक्करो चिय पसिद्धं / . किं पुण एस पयत्तो मोक्खफलत्तेण एयस्स // 637 // भोगम्मि कम्मवावारदारतोवित्थ दोसपडिसेहो। णेओ आणाजोएण कम्मणो चित्तयाएं य // 638 // इहरा ण हिंसगस्स वि दोसो पिसियादिभोत्तुकम्माओ / जं तस्सिद्धिपसंगो एयं लोगागमविरुद्धं // 639 // ता तहसंकप्पो च्चिय एत्थं दुट्ठो त्ति इच्छियव्वमिणं / तदभावपरिण्णाणं उवओगादीहिं उ जतीणं // 640 // गिहिसाहूभयपहवा उग्गमउप्पायणेसणा दोसा / / एए तु मंडलीए णेया संजोयणाईया // 641 // संयोजणा पमाणे इंगाले धूम कारणे चेव / उवगरण भत्तपाणे सबाहिरब्भंतरा पढमा // 642 // बत्तीस कवल माणं रागद्दोसेहिं धूमइंगालं / वेयावच्चादीया कारणमविहिम्मि अइयारो // 643 // एयं णाऊणं जो सव्वं चिय सुत्तमाणतो कुणति / / काउं संजमकायं सो भवविरहं लहुं लहति // 644 // 258