________________ पव्वाविओ सिच्चादि (सियत्ति य) मुंडावेउमिय(माइ) जंभणियं / सव्वं च इमं सम्मं तप्परिणामे हवति पायं // 492 / / जुत्तो पुणं एस कमो ओहेणं संपयं विसेसेणं / / जम्हा असुहो कालो दुरणुचरो संजमो एत्थ // 493 // तंतंतरेसु वि इमो आसमभेओ पसिद्धओ चेव। ता इय इह जइयव्वं भवविरहं इच्छमाणेहिं // 494 // // 11 // साधुधर्मविधिपञ्चाशकम् // नमिऊण वद्धमाणं मोक्खफलं परममंगलं सम्मं / वोच्छामि साहुधम्मं समासओ भावसारं तु // 495 // चारित्तजुओ साहू तं दुविहं देससव्वभेएण / देसचरित्ते ण तओ इयरम्मि उ पंचहा तं च // 496 // सामाइयत्थ पढमो छेओवट्ठाणं भवे बीयं / परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च . // 497 // तत्तो य अहक्खायं खायं सव्वम्मि जीवलोगम्मि / जं चरिऊण सुविहिया वच्चंति अणुत्तरं मोक्खं // 498 // समभावो सामइयं तणकंचणसत्तुमित्तविसओ त्ति / णिरभिस्संगं चित्तं उचियपवित्तिप्पहाणं च // 499 // सति एयम्मि उ णियमा णाणं तह दंसणं च विण्णेयं / एएहिं विणा एयं ण जातु केसिंचि सद्धेयं // 500 // गुरुपारतंतणाणं सद्दहणं एयसंगयं चेव / एत्तो उ चरित्तीणं मासतुसादीणमु (णि) टुिं // 501 // धम्मो पुण एयस्सिह संमाणुट्ठाणपालणारूवो। विहिपडिसेहजुयं तं आणासारं मुणेयव्वं / 246