________________ तत्तो सयलसमीहियसिद्धी णियमेण अविकलं जं सो / कारणमिमीए भणिओ जिणेहिं जियरागदोसेहिं // 433 // मग्गाणुसारिणो खलु तत्ताभिणिवेसओ सुभा चेव / / होइ समत्ता चेट्ठा असुभा वि य णिरणुबंध ति // 434 // सो कम्मपारतंता वट्टइ तीए ण भावओ जम्हा / इय जत्ता इय बीयं एवंभूयस्स भावस्स // 435 // ता रहणिक्खमणादि वि एते उ दिणे पडुच्च कायव्वं / जं एसो च्चिय विसओ पहाणमो तीऍ किरियाए // 436 // विसयप्पगरिसभावे किरियामेत्तं पि बहुफलं होइ / सक्किरिया वि हु ण तहा इयरम्मि अवीयरागि व्व // 437 // लभ्रूण दुल्लहं ता मणुयत्तं तह य पवयणं जइणं / उत्तमणिदंसणेसुं बहुमाणो होइ कायव्वो // 438 // एसा उत्तमजत्ता उत्तमसुयवण्णिया सदि बुहेहिं / सेसा य उत्तमा खलु उत्तमरिद्धी' कायव्वा // 439 // इयराऽतब्बहुमाणोऽवण्णा य इमीऍ णिउणबुद्धीए / एवं विचिंतियव्वं गुणदोसविहावणं परमं // 440 // जेट्ठम्मि विज्जमाणे उचिए अणुजेट्ठपूयणमजुत्तं / लोगाहरणं च तहा पयड़े भगवंतवयणम्मि // 441 // लोगो गुरुतरगो खलु एवं सति भगवतो वि इट्ठो त्ति / मिच्छत्तमो य एवं एसा आसायणा परमा // 442 // इय अण्णत्थ वि सम्मं णाउं गुरुलाघवं विसेसेण / इट्टे पयट्टियव्वं एसा खलु भगवतो आणा // 443 // जत्ताविहाणमेयं णाऊणं गुरुमुहाउ धीरेहिं / एवं चिय कायव्वं अविरहियं भत्तिमंतेहिं // 444 // 241