________________ जिणभवणकारणविही सुद्धा भूमी दलं च कट्ठाई।..... भियगाणइसंधाणं सासयवुड्डी य जयणा य . // 303 // दव्वे भावे य तहा सुद्धा भूमी पएसऽकीला य। दव्वेऽपत्तिगरहिया अण्णेसि होइ भावे उ // 304 // अपदेसम्मि ण वुड्डी कारवणे जिणघरस्स ण य पूया / साहूणमणणुवाओ किरियाणासो उ अववाए . // 305 // सासणगरिहा लोए अहिगरणं कुत्थियाण संपाए / आणादीया दोसा संसारणिबंधणा घोरा // 306 // कीलादिसल्लजोगा होंति अणिव्वाणमादिया दोसा / एएसि वज्जणट्ठा जइज्ज इह सुत्तविहिणा उ // 307 // धम्मत्थमुज्जुएणं सव्वस्सापत्तियं ण कायव्वं / इय संजमो वि सेओ एत्थ य भयवं उदाहरणं // 308 // सो तावसासमाओ तेसिं अप्पत्तियं मुणेऊणं / परमं अबोहिबीयं ततो गतो हंतऽकाले वि // 309 // इय सव्वेण वि सम्मं सकं अप्पत्तियं सइ जणस्स / णियमा परिहरियव्वं इयरम्मि सतत्तचिंता उ // 310 // कट्ठादी वि दलं इह सुद्धं जं देवतादुववणाओ। . णो अविहिणोवणीयं सयं च कारावियं जं णो // 311 // तस्स वि य इमो णेओ सुद्धासुद्धपरिजाणणोवाओ / तक्कहगहणादिम्मी सउणेयरसण्णिवातो जो // 312 // णंदादिसुहो सद्दो भरिओ कलसोऽथ सुंदरा पुरिसा / सुहजोगाइ य सउणो कंदियसद्दादि इतरो उ // 393 // सुद्धस्स वि गहियस्सा पसत्थोदयहम्मि सुहमुहुत्तेणे / / संकामणम्मि वि पुणो विण्णेया सउणमादीया // 314 // 230