________________ तत्थ पुण वंदणाइम्मि उचियसंवेगजोगओ णियमा / अस्थि खलु भावलेसो अणुहवसिद्धो विहिपराणं // 292 // दव्वत्थयारिहत्तं सम्मं णाऊण भयवओ तम्मि / तह य (उ) पयट्टताणं तब्भावाणुमइओ सो य (चेव)॥ 293 // अलमेत्थ पसंगेणं उचियत्तं अप्पणो मुणेऊणं / दो वि इमे कायव्वा भवविरहत्थं बुहजणेण // 294 // .. // 7 // जिनभवनविधिपञ्चाशकम् // नमिऊण वद्धमाणं वोच्छं जिणभवणकारणविहाणं / संखेवओ महत्थं गुरूवएसाणुसारेणं // 295 // अहिगारिणा इमं खलु कारेयव्वं विवज्जए दोसो / आणाभंगाउ च्चिय धम्मो आणाए. पडिबद्धो // 296 // आराहणाइ तीए पुण्णं पावं विराहणाए उ / एवं धम्मरहस्सं विण्णेयं बुद्धिमंतेहिं . // 297 // अहिगारी उ गिहत्थो सुहसयणो वित्तसंजुओ कुलजो।। अक्खुद्दो धिइबलिओ मइमं तह धम्मरागी अ // 298 // गुरुपूयाकरणरई सुस्सूसाइगुणसंगओ चेव / णायाऽहिगयविहाणस्स.णियमाणप्पहाणो य // 299 // एसो गुणद्धिजोगा अणेगसत्ताण तीइ विणिओगा। गुणरयणवियरणेणं तं कारितो. हियं कुणइ / // 300 // तं तह पवत्तमाणं दटुं केइ गुणरागिणो मग्गं / / अण्णे उ तस्स बीयं सुहभावाउ पवज्जति // 301 // जो च्चिय सुहभावो खलु सव्वन्नुमयम्मि होइ परिसुद्धो / सो च्चिय जायइ बीयं बोहीए तेणणाएण // 302 // . 220