________________ चरणपडिवत्तिरूवो थोयव्वोचियपवित्तिओ गुरुओ। संपुण्णाणाकरणं कयकिच्चे हंदि उचियं तु // 268 // णेयं च भावसाहुं विहाय अण्णो चएति काउं जे। सम्म तग्गुणणाणाभावा तह कम्मदोसा य // 269 // इत्तो च्चिय फुल्लामिसथुइपडिवत्तिपूयमज्झम्मि। चरिमा गरुई इट्ठा अण्णेहि वि णिच्चभावाओ // 270 // दव्वत्थयभावत्थयरूवं एयमिय होति दट्ठव्वं / अण्णोण्णसमणुबद्धं (विद्धं) णिच्छयतो भणियविसयं तु॥ 271 // जइणो वि हु दव्वत्थयभेदो अणुमोयणेण अस्थि त्ति / एयं च एत्थ णेयं इय सुद्धं तंतजुत्तीए // 272 // तंतम्मि वंदणाए पूयणसक्कारहेउ उस्सग्गो। . जतिणो वि हु णिट्ठिो ते पुण दव्वत्थयसरूवे // 273 // मल्लाइएहिं पूआ सक्कारो पवरवत्थमादीहिं / अण्णे विवज्जओ इह दुहा वि दव्वत्थओ एत्थ // 274 // ओसरणे बलिमादी ण चेह जं भगवया वि पडिसिद्धं / ता एस मणुण्णाओ उचियाणं गम्मती तेण // 275 // ण य भगवं अणुजाणति जोगं मुक्खविगुणं कदाचिदपि / ण य तयणुगुणो वि तओ ण बहुमतो होति अण्णेसिं॥ 276 // जो चेव भावलेसो सो चेव य भगनतो बहुमतो उ / ण तओ वि णेयरेणं ति अत्थओ सो वि एमेव // 277 // कज्जं इच्छंतेणं अणंतरं कारणं पि इटुं तु / / जह आहारजतित्तिं इच्छंतेणेह आहारो // 278 // जिणभवणकारणाइ वि भरहादीणं ण वारितं तेण / - जह तेसिं चिय कामा सल्लविसादीहिं णाएहिं // 279 // 22.