________________ // 6 // स्तवनविधिपञ्चाशकम् // नमिऊण जिणं वीरं तिलोगपुज्जं समासओ वोच्छं / थयविहिमागमसुद्धं सपरेसिमणुग्गहट्ठाए // 245 // दव्वे भावे य थओ दव्वे भावथयरागओ सम्मं / जिणभवणादिविहाणं भावथओ चरणपडिवत्ती // 246 // जिणभवणबिंबठावणजत्तापूजाइ सुत्तओ विहिणा / दव्वत्थउ त्ति नेयं भावत्थयकारणत्तेण // 247 // विहियाणुट्ठाणमिणं ति एवमेवं सया करेंताणं / होइ चरणस्स हेऊ णो इहलोगादवेक्खाए // 248 // एवं चिय भावथए आणाआराहणाउ रागो वि.। जं पुण इयविवरीयं तं दव्वथओ वि णो होइ // 249 // भावे अइप्पसंगो आणाविवरीयमेव जं किंचि / इह चित्ताणुट्ठाणं तं दव्वथओ भवे सव्वं. // 250 // जं वीयरागगामी अह तं णणु गरहितं पि हु स एवं / / सिय उचियमेव जं तं आणाआराहणा एवं // 251 // उचियं खलु कायव्वं सव्वत्थ सया णरेण बुद्धिमता / इइ फलसिद्धी णियमा एस चिय होइ आणंत्ति // 252 // जं पुण एयविउत्तं एगंतेणेव भावसुण्ां ति / तं विसयम्मि वि ण तओ भावथयाहेउतो णेयं // 253 // समयम्मि दव्वसद्दो पायं जं जोग्गयाए रूढो त्ति / णिरुवचरितो उ बहुहा पओगभेदोवलंभाओ // 254 // मिउपिंडो दव्वघडो सुसावरो तह य दव्वसाहु त्ति / / साहू य दव्वदेवो एमाइ सुए जओ भणितं // 255 // 225