________________ भण्णइ जिणपूयाए कायवहो जति वि होइ. उ कहिचि / तह वि तई परिसुद्धा गिहीण कूवाहरणजोगा // 186 // असदारंभपवत्ता जं च गिही तेण तेसि विनेया। तन्निव्वित्तिफल च्चिय एसा परिभावणीयमिणं // 187 // उवगाराभावम्मि वि पुज्जाणं पूजगस्स उवगारो / मंतादिसरणजलणाइसेवणे जह तहेहं पि // 188 // . देहादिणिमित्तं पि हु जे कायवहम्मि तह पयर्टेति / जिणपूयाकायवहम्मि तेसिमपवत्तणं मोहो // 189 // सुत्तभणिएण विहिणा गिहिणा णिव्वाणमिच्छमाणेण / . तम्हा जिणाण पूजा कायव्वा अप्पमत्तेणं // 190 // एकं पि उदगबिंदुं जह पक्खित्तं महासमुद्दम्मि / जायइ अक्खयमेवं पूया जिणगुणसमुद्देसु // 191 // उत्तमगुणबहुमाणो पयमुत्तमसत्तमज्झयारम्मि / उत्तमधम्मपसिद्धी पूयाए जिणवरिंदाणं // 192 // सुव्वइ दुग्गइणारी जगगुरुणो सिंदुवारकुसुमेहिं / पूजापणिहाणेणं उववण्णा तियसलोगम्मि // 193 // सम्मं णाऊण इमं सुयाणुसारेण धीरपुरिसेहिं / एवं चिय कायव्वं अविरहियं सिद्धिकामेहिं // 194 // // 5 // प्रत्याख्यानपञ्चाशकम् // नमिऊण वद्धमाणं समासओ सुत्तजुत्तिओ वोच्छं / पच्चक्खाणस्स विहिं मंदमइविबोहणट्ठाए // 195 // पच्चक्खाणं नियमो चरित्तधम्मो य होंति एमट्ठा / . मूलुत्तरगुणविसयं चित्तमिणं वणियं समए . // 196 // 220