________________ सामंताईयाण वि ढुक्कं वासं दवं च रण्णोऽत्थि। तेसि मंतण णिवगह बंधामो मंतिणाणं ति // 847 // . सिटे णत्थि उवाओ तं दग कित्तिमगहो य मिलणं ति / तोसो रज्जम्मि ठिती सुवास सव्वं तओ भदं // 848 // एएणाहरणेणं आया राया सुबुद्धिसचिवेण / दुसमाए कुग्गहोदगपाणगहा ,रक्खियव्वो त्ति // 849 // बहुकुग्गहम्मि वि जणे तदभोगऽणुवत्तणाएँ तह चेव / भावेण धम्मरज्जे जा सुहकालो सुवासं ति // 850 // आणाजोगेण य रक्खणा इहं ण पुण अण्णहा णियमा / ता एयम्मि पयत्तो कायव्वो सुपरिसुद्धम्मि // 851 // तित्थे सुत्तत्थाणं गहणं विहिणा उ एत्थ तित्थमियं / उभयण्णू चेव गुरू विही उ विणयादिओ चित्तो // 852 // उभयण्णू वि य किरियापरो दढं पवयणाणुरागी य / ससमयपण्णवओ परिणओ य पण्णो य अच्वत्थं . // 853 // जो हेउवायपक्खम्मि हेउओ आगमे य आगमिओ। सो ससमयपन्नवओ सिद्धंतविराहगो अण्णो // 854 // एत्तो सुत्तविसुद्धी अत्थविसुद्धी य होइ णियमेणं / सुद्धाओ य इमाओ णाणाईया पयट्टंति // 855 // सुत्ता अत्थे जत्तो अहिगयरो णवरि होइ कायव्वो / एत्तो उभयविसुद्धि त्ति मूयगं केवलं सुत्तं अत्थो वक्खाणं ति य एगट्ठा एत्थ पुण विही एसो। . मंडलिमाई भणिओ परिसुद्धो पुव्वसूरीहिं // 857 // मंडलि णिसज्ज अक्खा किइकम्मुस्सग्ग वंदणं जेट्टे / उवओगो संवेगो पसिणुत्तर संगयत्थ त्ति // 858 // // LF 188