________________ जह जोइसिओ कालं सम्मं वाहिविगमं च वेज्जो त्ति / जाणति सत्थाओ तहा एसो जयणाइविसयं तु // 775 // तिविहनिमित्ता उवओगसुद्धिओऽणेसणिज्जविन्नाणं / जह जायति परिसुद्धं तहेव एत्थं पि विनेयं // 776 // सुत्ते तह पडिबंधा चरणवओ न खलु दुल्लहं एयं / / न वि छलणाय वि दोसो एवं परिणामसुद्धीए . // 777 // जयणाविवज्जया णुण विवज्जओ नियमओ उ तिण्हं पि / तित्थगराणाऽसद्धाणओ तहा पयडमेयं तु // 778 // जं दव्वखेत्तकालाइसंगयं भगवया अणुट्ठाणं / भणियं भावविसुद्धं निप्फज्जइ जह फलं तह उ // 779 // न वि किंचि वि अणुणातं पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहि / तित्थगराणं आणा कज्जे सच्चेण होयव्वं // 780 // मणुयत्तं जिणवयणं च दुलहं भावपरिणतीए उ। जह एसा निष्फज्जति तह जइयव्वं पयत्तेणं . // 781 // उस्सग्गववायाणं जहट्ठियसरूवजाणणे जत्तो / कायव्वो बुद्धिमया सुत्तणुसारेण णयणिउणं / // 782 // दोसा जेण निरुब्भंति जेण खिज्जंति पुव्वकम्माइं / सो खलु मोक्खोवाओ रोगावत्थासु समणं व // 783 // उन्नयमवेक्ख इयरस्स पसिद्धी उन्नयस्स इयराओ। इय अन्नोऽन्नपसिद्धा उस्सग्गववाय मो तुल्ला // 784 // दव्वादिएहिं जुत्तस्सुस्सग्गो जदुचियं अणुट्ठाणं / रहियस्स तमववाओ उचियं चियरस्स न उ तस्स // 785 // जह खलु सुद्धो भावो आणाजोगेण साणुबंधो त्ति / . जायइ तह जइयव्वं सव्वावत्थासु दुगमेयं // 786 // 182