________________ // 740 // गुव्विणि विसज्जगाणं हत्थे देवंगमाइयाणं च / पढमं च देविदंसण साहण तह तस्स एए त्ति // 739 / / तन्नेहा सयगहणं एए अहमेव तस्स अप्पिस्सं / परिहणतोसा सहिसंनिहाण तह भासणं चित्तं // 740 // एएहिं दिटेहिं सो चिय दिट्ठो त्ति परिहिएहिं तु / सो च्चिय ओसत्तो सहि ! एमादि अतीव नेहजुयं // 741 / / वीसत्थभासियाणं सवणत्थं आगएण रन्ना उ / सयमेव सुयं एयं कोवो अवियारणा चेव // 742 // एत्थ य इमं निमित्तं अन्नमिणं मग्गियं पि नो दिन्नं / / अन्नेण नियपियाणेहओ त्ति गयसेट्ठिपुत्तेण // 743 // पट्टवणमागयाणं चंडालीणं च दाणमाणाए। रन्नम्मि बाहुछेयं कुणह त्ति इमीऍ पावाए // 744 // करणं वाहाणयणं तह दुक्खा पसवणं णईतीरे / डिभपलोट्टण णइपइ मुहधरणं कह वि किच्छेण // 745 // देवयकंदण सच्चाहिठाण तह बाहुभावओ चरणं / तावसकुमारदसण गुरुकहण तवोवणाणयणं // 746 // रण्णो अंगयदरिसण णामे संका य सेट्ठि पुच्छणया / चिटुंति दंसणे णाण सोग मरणत्थणिग्गमणं // 747 / / बहि चेईहर अभि अमियतेय सुनिमित्तजोगओ धरणं / कहणा ण इमोवाओ एयम्मी पत्थुए णायं // 748 // * गंगातीरे सोत्तिय चंडालाइ रत्थाइ जरचीरे / धण्णेविछित्तगुट्ठयपरंपराए महादोसो // 749 // तस्स परिवज्जणत्थं णिज्जामगपुच्छ उच्छुदीवम्मि / कहिए णेयावणमच्छणा य तह उच्छुवित्तीए // 750 // . 170