________________ एवं सज्झायाइसु णिच्चं तह पक्खवायकिरियाहि / सइ सुहभावा जायइ विसिट्ठकम्मक्खओ णियमा // 691 // तह जह ण पुणो बंधइ पायाणायारकारणं तमिह / .. तत्तो विसुज्झमाणो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो // 692 // इत्तों अकरणनियमो अन्नेहि वि वण्णिओ ससत्थम्मि / सुहभावविसेसाओ न चेवमेसो न जुत्तो त्ति // 693 // जं अत्थओ अभिण्णं अण्णत्था सद्दओ वि तह चेव / तम्मि पओसो मोहो विसेसओ जिणमयठियाणं // 694 // सव्वप्पवायमूलं दुवालसंगं जओ समक्खायं / रयणागरतुल्लं खलु तो सव्वं सुंदरं तम्मि // 695 // पावे अकरणनियमो पायं परतन्निवित्तिकरणाओ। नेओ य गंठिभेए भुज्जो तदकरणरूवो उ. // 696 // णिवमंति सेट्ठिपमुहाण णायमेत्थं सुयाउ चत्तारि / रइबुद्धिरिद्धिगुणसुंदरीउ परिसुद्धभावाओ / / // 697 // साकेए रायसुया सड्डी रतिसुंदरि त्ति रूंववई / नंदणगसामिणोढा सुयाएँ रागो उ कुरुवतिणो // 698 // जायण दाणा विग्गह गहरागनिवेयणम्मि संविग्गा / तन्निव्वत्तणचिंतण चाउम्मासम्मि वयकहणा // 699 / / पडिवालणं तु रण्णो तीए तह देसणा असक्कारो / :: पुण्णम्मि य णियबंधे फलवमणं तह वि न विरागो // 700 // किं एत्थं रागजणणं अच्छीण ? पयावितो न मोल्लंति / संवेगा तद्दाणं विम्हियरनो विरागो य // 701 // . गंभीरदेसणाओ उभयहियमिणंति पावरक्खा य / रनो बोही तो सो करेमि किं ? चयसु परदारं // 702 // 175