________________ साहुवगारि त्ति अहं णामड्ढो तह समुद्दिसिउमाओ। एयाएँ अवत्थाए तं अच्छसि भत्तलोहिल्लो // 631 // अमयमिव मण्णमाणो तं फरुसगिरं तु सो ससंभंतो। चरणगओ खामेई धुवइ य तं समललित्तं ति // 632 // उटेह वयामो ती तह काहामी जहा हु अचिरेणं / होहिह णिरुया तुब्भे बेई ण तरामि गंतुं जे . // 633 // आरुह मे पिट्ठीए आरूढो तो तहिं पहारं च / परमासुइदुग्गंधं मुयई पट्ठीएँ केसयरं // 634 // बेइ गिरं धिय मुंडिय ! वेगविहाओं कउ त्ति दुक्खविओ। इइ बहुविहमक्कोसइ पए पए सो वि भगवं तु // 635 // ण गणइ तं फरुसगिरं ण य तं गरहइ दुरहिगंधं तु / चंदणमिव मण्णंतो मिच्छा मे दुक्कडं भणइ // 636 // चिन्तेइ किं करेमी ? कह णु समाही भवेज्ज साहुस्स ? / इय बहुविहप्पगारं ण वि तिण्णो जाव खोभेउं // 637 // ताहे अभित्थुणित्ता गओ तओ आगओ य इयरो उ / आलोइए गुरूहि धण्णो त्ति तहा समणुसिट्ठो // 638 / / जह तेणमेसणा णो भिण्णा इय एसणाएँ जइयव्वं / सव्वेण सया अद्दीणभावओ सुत्तजोएणं . // 639 // धिज्जाइ सोमिलज्जो आदाणाइसमिईएँ उवउत्तो / गुरुगमणत्थं उग्गाहणा उ गमणे णियत्तणया // 640 // तह मुयण सम्म चोयण किमेत्थ सप्पो त्ति एव पडिभणिओ / संविग्गो हाऽजुत्तं भणियं ति सुरीएऽणुग्गहिओ // 641 // तह सप्पदंसणेणं सुट्टयरं तिव्वसद्धसंपण्णो। दंडगगहणिक्खेवे अभिग्गही सव्वगच्छम्मि // 642 // 100