________________ अणुमाणेण वि तदभावणिच्छओ णेव तीरती काउं / तप्पडिबद्धं लिंगं जं णो पच्चक्खसंसिद्धं // 1296 / / गम्मति ण यांगमातो तदभावो जं तओ ण तव्विसओ / विहिपडिसेधपहाणो कज्जाकज्जेसु सो इट्ठो // 1297 // उवमाणेणऽवि तदभावनिच्छओ णेव तीरती काउं। तस्सरिसगम्मि दिढे अण्णम्मि पवत्तइ तयं पि // 1298 // दिवो सुओ व अत्थो णहि तदभावं विणा न संभवति / अत्थावत्ती वि तओ ण गाहिगा होइ एतस्स // 1299 // जो वि य पनाणपंचगणिवित्तिरूवो मतो अभावो त्ति / सो वि य जं णिरुवक्खो ण गमति ता णिययणेयं तु॥ 1300 // ण य सो तीरइ णाउं अक्खं व ण यऽन्नहा कुणति कज्जं / सत्तिविरहा इमीवय ( अ व) भावे सो कहमभावो त्ति ? // 1301 // सो सो चेव ण होई पुरु (रि) सादित्ता देवदत्तो व्व / एवं च विरुद्धो वि हुं लक्खणतो होति एसो त्ति // 1302 // ण य देवदत्तनाणं पच्चक्खं जेण णिच्छयो तम्मि। एसो असव्वण्णु च्चिय णातं पि ण संगतं तेणं // 1303 // ण य कायवयणचेट्ठा गुणदोसविणिच्छयम्मि लिंगं तु / जं बुद्धिपुब्विगा सा णडम्मि वभिचारिणी दिट्ठा // 1304 // .सिय तकालम्मि तओ तेणेव समण्णितो तु भावेणं / तण्णो तक्कालम्मि वि रूवर्गमादीसु गेहीतो // 1305 // * सव्वन्नुभूमिगं पि हु नच्चंति णडा जतो ततो एवं / अब्भुवगमम्मि पावति सव्वण्णुत्तं पि तेसिं तु // 1306 // पडिसेहगं पि माणं माणाभासं तु दंसितं एवं / / ता अणिवारियपसरो सिद्धो सव्वण्णुभावो वि // 1307 / / 109