________________ अह जागादिविहाणं मिच्छारूवेण णिच्छियं चेव / भणिता य तेण हिंसादीया कुगतीएँ हेतु ति // 1272 // सव्वण्णुणो अहऽण्णो तस्स विरुद्धो व सो असव्वण्णू / जत्तो अण्णो जस्स य तओ विरुद्धो स सव्वण्णू // 1273 // विवरीतण्णु वि णेसो जमणेगंतो ण होइ विवरीयो / बाहगपमाणविरहा भवतो वि य सिद्धमेवेयं // 1274 // जति वि (य) स कुत्थियण्णू णरगादी एत्थ कुत्थिया चेव / ते जाणति च्चिय तओ एवं पि ण कोई दोसो त्ति // 1275 / / अह तु अकिंचिण्णु च्चिय एवं पुरिसादओ कहं तम्मि ? / परिगप्पियपडिसेहे अब्भुवगमबाहणं णियमा // 1276 // अह उ अभावो त्ति तओ तस्सेव पगासगो अयं सद्दो / एयं पि माणविरहा असंगतं चेव णातव्वं // 1277 // पुरिसत्तं पि असिद्धं वेदाभावातो तम्मि भगवंते / / आगारमित्ततुल्लत्तणे वि मायाणराणं व . // 1278 // ण य णाणपगरिसेणं पुरिसादीणं पि कोइ वि विरोहो / वयणं तु णाणजुत्तस्स चेव उववण्णतरगं तु // 1279 // सिय अह जो जो पुरिसो सो सो णो णाणपगरिससमेतो / दिट्ठो ति ता ण जुत्तं अदिट्ठपरिगप्पणं काउं // 1280 // अस्सावणत्तजुत्तं सत्तं सव्वेसु चेव भावेसु / दिलृ पि सद्दरूवे अविरोहा अण्णहा सिद्धं // 1281 // * एवं पुरिसत्तं पि हु जइ वि ण विण्णाणपगरिससमेतं / दिटुं तहऽवऽविरोहा तेण समेतं पि संभवइ // 1282 // वयणं पि ण रागादीणमेव कज्जं ति तेहिं रहितो वि / पगतं पयंपइ जतो कोई मज्झत्थभावेण // 1283 // .. 107