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________________ शास्त्रार्थ को चाहातेही नहीं. तो भी यहां के संघ की सम्मति की आड लेना यह कितनी बड़ी भूल है. ___और जैन इतिहासके प्रमाणसे व दुनिया भरके वादी, प्रतिवादियों के धार्मिक या नैयाक शास्त्रार्थ के नियमके प्रमाण से भी यही पाया जाता है कि वादी प्रतिवादीके साथ शास्त्रार्थ करनेका मंजूर करलेवे. उस के बाद जब प्रतिवादी आकर वादी को शास्त्रार्थ के लिये आमंत्रण करे, तब वादीको उसके साथ अवश्य ही शास्त्रार्थ करना पडता है .मगा वहां किसी तरह का बहाना नहीं बतला सकता. अगर. उस समय किसी तरह का बहाना बतलाकर शास्त्रार्थ न.. करे. तो उसकी हार साबित होती है. इस न्याय से भी जब मेरे साथ शास्त्रार्थ करने का मंजूर कर लिया और मैंने यहांपर आकर शास्त्रार्थ करनेवाले मुनि का नाम मांगा च सत्यग्रहण करने की सही मांगी, तब बीच में संघ का बहाना बतला कर शस्त्रार्थ नहीं किया. इस पर सें भी पाठकगण विवार लें कि इस शास्त्रार्थ में किसकी हार साबित होती है.. श्रीमान्-विद्याविनयजी को सूचना. आपने आनंद सागर जी के ऊपर पौष शुदी 15, 2448 के रोज इटोर में एक हेडबील छपवाकर कट किया था, उसमें आपके सामने पक्षवाले आनंदसागर जी वगैरह में से कोई भी साधु आपके साथ शास्त्रार्थ करने को बाहर नहीं आये. उस संबंधी आप लिखते हैं कि, ( एक माणसागर के सिवाय अन्य किसीने भी अभीतक शास्त्रार्थ की इच्छा प्रगट नहीं की. उसको लिखा गया कि तुम इन्दोर आओ, हम इन्दोर जाते हैं. वह न तो, अभीतक इन्दार आया और न उसन शास्त्रार्थ का स्वाद चखा.) इस लेखमें ' न इन्दोर आया और न शास्त्रार्थ का स्वाद चखा ' ऐसा आक्षेप आप मेरेपर करते हैं, अब मैं शास्त्रार्थ का
SR No.004449
Book TitleDevdravya Nirnay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJinkrupachandrasuri Gyanbhandar
Publication Year1917
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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