________________ भक्षण से भी पाप लगता है / हाँ, यदि किसी गरीब-निराधार-अशक्त जैन को श्री संघ साधारण खाते में से दे तो वह उसका उपयोग कर सकता है। देवद्रव्य और साधारण द्रव्य में सिर्फ इतना ही अन्तर है कि देवद्रव्य का केवल मन्दिर और मूर्ति संबन्धित कार्यों में ही उपयोग कर सकते हैं, जबकि साधारण द्रव्य को संघ सप्तक्षेत्रों में उचित रूप से व्यय कर सकता है / इस प्रकार जो सातों क्षेत्रों का आधार भूत है, ऐसे साधारण खाते को विशेष रूप से पुष्ट करने की आवश्यकता है और यह बात सब को स्वीकार करनी ही पड़ेगी। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि साधारण खाते को किस प्रकार पुष्ट करना चाहिये ? इस संबंध में कई व्यक्तियों की ऐसी सलाह है साधारण खाते को पुष्ट करने के लिए सभी जैनों पर किसी प्रकार का टेक्स लगाना चाहिये किन्तु इस प्रकार के सलाहाकारों को जैनों की परिस्थति का सर्वप्रथम विचार करना चाहिये। जैनों में व्याप्त गरीबी, दुष्काल पर दुष्काल, बढ़ती हुई मॅहगाई और सरकार के कितने ही टेक्स आदि नाना कष्टों में पड़े हुए जैन समाज पर धर्म के नाम पर यदि टेक्सं लगाया गया तो मरते हुए को लात लगाने ( मारने) के समान नहीं हो जायेगा क्या? अरे ! कोन्फरन्स जैसी संस्था में चार-चार आने देने में भी लोग कितना विचार