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________________ एवं समय-समय पर घटित ऐतिहासिक दृष्टान्तों को देकर प्रकाशित की। ___ मैं जब यह उपसंहार लिख रहा हूँ, तब तक मेरे विचारों को असत्य सिद्ध करने वाला एक भी समुचितप्रमाण नहीं दिया गया। जो सिर्फ 'श्राद्धविधि' का प्रमाण (?) देकर अपनी बात को सत्य सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहे हैं, उसका वे अर्थ ही गलत कर रहे हैं / यह बात मैंने अपनी दूसरी पत्रिका में तथा प्रवर्तक श्री मंगलविजयजी ने “बोली बोलने का विधान श्राद्धविधि में है या नहीं ?' इस नामकी अपनी पत्रिका में अच्छी तरह से बताया है। इससे समाज समझ गया होगा कि 'श्राद्धविधि' के "द्रव्योत्सर्पणपूर्वकारात्रिकविधानादिना" इस पाठ में आये हुए 'उत्सर्पण' शब्द का अर्थ 'बोली बोलनी' ऐसा अर्थ कदापि नहीं हो सकता। हमें अत्यधिक आश्चर्य होता है कि जो महात्मा श्री, बोली बोलने का विधान अनेक धर्मग्रन्थों में होने की उद्घोषणा करते थे और जिन्होंने अनेक ग्रन्थों के नाम भी दिये हैं वे सिर्फ अक मात्र 'श्राद्धविधि' के अंक पाठ में आये हुए 'उत्सर्पण' शब्द से ही ( वह भी गलत अर्थ करके ) स्वपक्ष की प्रबलता समझकर अन्य ग्रन्थों पर दृष्टिपात भी नहीं करते हैं। हमारे प्राचीन भण्डारों में ४५आगम और हजारों बल्कि लाखों ग्रन्थ मौजूद होने पर भी
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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