________________ केन्द्रित करो। यदि एक मन्दिर सौ वर्ष पूर्व बना हो तो उस मन्दिर में सदैव बढ़ते हुए देवद्रव्य को अब तक कितना होना चाहिए ? फिर भी किसी ने सौ वर्षों के हिसाब को स्पष्टतया देखा भी है क्या ? सैकड़ों वर्षों से चल रही बड़ी-बड़ी पेढ़ियों के पुराने हिसाब को किसी ने देखा है क्या ? मूल रकम कितनी थी और अब तक उसकी क्या-क्या व्यवस्थाएँ हुई, इस बात का किसी को ज्ञान है ? ऐसी स्थिति में लोग यदि इस प्रकार की कल्पना करते हैं कि 'अविधि से की गई देवद्रव्य की वृद्धि के ये परिणाम आये हैं' तो इसमें बुरा क्या है ? सुना गया है कि अहमदाबाद से लेकर बम्बई तक देवद्रव्य से लगभग 60 लाख का उधार लिया गया है। अब विचार करें कि उस 60 लाख के 50 लाख न मिलते हो तो 40 लाख रुपयों का नाश हुआ माना जायेगा या नहीं? यदि हुआ तो उसे अविधि से उत्पन्न किये हुए द्रव्य का परिणाम कहें तो क्या बुरा है ? अतएव पुनः-पुनः कहा जाता है कि देवद्रव्य की वृद्धि भी विधिपूर्वक मोह-ममत्व रहित और द्रव्य-क्षेत्र-कालभाव को देखकर ही करनी चाहिए। शास्त्रकार भी द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को देखकर ही कार्य करने के लिए कहते हैं। देखिए 'द्रव्यसप्तति' ग्रंथ के ८वीं गाथा की टीका में आगे टीकाकार क्या कह रहे हैं ?