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________________ ( 78 ) द्रव्यवद्धये यद्देवनिमित्त स्थावरादिनिष्पादनम् / तथा महार्घाऽनेहसि विक्रयेण बहुदेवद्रविणोत्पादनाय गृहिणा यदेवधनेन समर्घधान्यसंग्रहणम् / तथा देवहेतवे कूपवाटिकाक्षेत्रादिविधानम् / ' तथा शुल्कशालादिषु भाण्डमुद्दिश्य राजग्राह्यभागाधिककरोत्पादनादुत्पन्नेन द्रव्येण जिनद्रविणवृद्धिनयनं जिनवराज्ञारहितम् // (पृष्ठ 52) ___अर्थात्-आज्ञाविरुद्ध देवद्रव्य की वृद्धि इस प्रकार की है- जैसे देवद्रव्य की वृद्धि हेतु श्रावक द्वारा कलाल मच्छीमार, वेश्या और चमार वगैरह को अधिक कीमती वस्तुके बदले में व्याज पर उधार देना तथा देवद्रव्य द्वारा देवनिमित्त मकान बनवाकर देवद्रव्य वृद्धि हेतु किराये पर देना तथा मँहगाई के समय अधिक मूल्य पर बेचने के लिए देवद्रव्य द्वारा सस्ते धान्य को खरीदकर रखना तथा देवनिमित्त कूप, वापिका, खेत आदि के कार्य करवाने और राजा द्वारा निर्धारित कर में वृद्धि करवाकर देवद्रव्य में वृद्धि करना, ये सब विधियां जिनाज्ञाविरुद्ध हैं। ये और ऐसे ही अन्य कार्यों को शास्त्रकार जिनाज्ञाविरुद्ध बताते हैं। तब हम समझ सकते हैं कि देवद्रव्यवद्धि हेतु वर्तमान में किस प्रकार की धमाधम और
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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