________________ ( 77 ) बुड्डंति भवसमुद्दे मूढा मोहेण अन्नाणी // 1 // " ____ अर्थात्-जिनेश्वर की आज्ञा रहित जो देवद्रव्य की वृद्धि भी करते हैं वे मूढ-अज्ञानी मोह से भवसमुद्र में डूबते हैं। इसी प्रकार 'सम्बोधसप्तति' ग्रन्थ के पृष्ठ 51 में, 'सम्बोधप्रकरण' के पृष्ठ 4 में और 'धर्मसंग्रह' के पृष्ठ 167 में तथा अन्यान्य अनेक धर्मग्रन्थों में भी उल्लेख है। यह बात सत्य भी है कि यदि देवद्रव्य की वृद्धि केवल परमात्मभक्ति निमित्त ही करना चाहते हैं तो उस वृद्धि में ममत्व या मोह होना ही नहीं चाहिये। जिस वृद्धि में या वृद्धि के कारण में मोह और ममत्व भरा हुआ हो, उसे वृद्धि का समुचित कारण कैसे कह सकते हैं ? शास्त्रकारों ने इतना ही कहकर विराम नहीं लिया है, किन्तु इस प्रकार के अनेक कार्यों का भी उल्लेख किया है कि जिस मार्ग से देवद्रव्य की वृद्धि भगवान की आज्ञाविरुद्ध है। देखिए-'सम्बोधसप्तति' ग्रन्थ की ६६वीं गाथा की टीका में कितना सुन्दर उल्लेख किया गया है "आज्ञारहितं वर्धनं चैवम्-यथा श्रावकेण देव स्ववृद्धये कल्पपालमत्स्यबन्धकवेश्याचर्मकारादीनां कलान्तरादिदानम् / तथा देववित्तेन वा भाटकादिहेतुकदेव