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________________ सम्यक्पेण जिनेश्वर की आज्ञा की पुष्टि ही होती है। ___ उपयुक्त अर्थ से स्पष्टतया मालुम हो जाता है कि देवद्रव्य की वृद्धि के लिये ग्राम, बाजार या क्षेत्रादि का उपदेश देना, साधु के लिये सर्वथा निषिद्ध है / देवद्रव्य की वृद्धि हेतु इस प्रकार के नये साधन भी उत्पन्न नहीं किये जा सकते हैं / हाँ, यदि स्वयमेव कोई गृहस्थ इस प्रकार की वस्तुओं को प्रदान करता है तो निःसंकोच देवमंदिर और प्रतिमाव्यवस्था के लिये उनका उपयोग हो सकता है तथा यदि उन वस्तुओं का विनाश होता हो तो साधु अथवा गृहस्थ कोई भी उसकी उपेक्षा नहीं ही कर सकता है और यदि करता है तो पाप का भागीदार होता है। - अब तक के वृत्तान्त से देवद्रव्य संबंधी वद्धि के उपायों को शास्त्रीय दृष्टि से अच्छी तरह देख चुके हैं किन्तु उसमें की अभी तक एक बात की स्पष्टता करना चाहता हूँ। देवद्रव्य की वृद्धि के जो उपाय बताये गये हैं उनके सम्बन्ध में दर्शन शुद्धि के पाठ में "कलान्तरप्रयोगादिनावा" कहा गया है अर्थात् आभूषण रखकर देवद्रव्य व्याज पर देकर भी देवद्रव्य की वृद्धि करने को कहा गया है / इस कथन के साथ अन्य शास्त्रकारों की कहाँ तक बातें मिलती है उन्हें भी देखना चाहिये।
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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