________________ पहले आती है, उस कार्य को करने लगता है। यह चिट्ठी डालने का रिवाज क्या शास्त्रीय है ? चिट्ठी डालने की अपेक्षा शंकानिवारणार्थ यदि कोई अन्य मार्ग अपनाना चाहे तो क्या नहीं अपना सकता है ? अपना सकता है। बस, इसी प्रकार भक्ति के कार्यों में भी क्लेशनिवारणार्थ ही बोली का रिवाज चालू किया है अतः उसमें परिवर्तन भी कर सकते हैं। यह रिवाज शास्त्रीय नहीं है यह सिद्ध होता है। इसीलिए परमप्रभावक, महान् गीतार्थ अकबर प्रतिबोधक आ० श्रीमद् विजय हीरसूरि महाराज को भी कहना पड़ा कि*"तैलादिमाननेन प्रतिक्रमणाद्यादेशप्रदानं न सुविहिताचरितं, परं क्वा क्वापि तदभावे जिनभवनादिनिर्वाहासंभवेन निवारयितुमशक्यमिति / " (हीरप्रश्नोत्तर,तीसरा प्रकाश, प्रश्नोत्तर 11) - अर्थात्-तेलादिकी बोली से प्रतिक्रमण में आदेश प्रदान करना, यह सुविहिताचरित नहीं है, परन्तु किसोकिसी स्थान पर इन बोलियाँ के अतिरिक्त जिनभवनादि का निर्वाह असम्भव होने से, उस रिवाज का निवारण अशक्य है। श्री हीरसूरि महाराज के उपयुक्त वचन से यह सिद्ध होता है कि बोली का रिवाज, शास्त्रीय रिवाज