________________ ( 35 ) को जीवितावस्था में उनके हो शिप्यो ने झगड़े - रगड़े को तिलाञ्जली देकर संवत्सरी एक दिन मनाने का निर्णय किया। हालांकि वे सभी प्रशंसापात्र तो अवश्य है परन्तु विचारणीय प्रश्न तो यह है कि जिन्हों ने इतना बड़ा भारी परिवर्तन कर दिया है क्या उन सभी आचार्यों मुनिराजों और श्री संघ के अग्रेसर श्रावकों का भवम्रमण बढ़ गया ? ) ध्यान में रखना चाहिए कि - मनुष्य के जैसे परिणाम होते हैं उसो के अनुसार पुण्य-पाप का बंध होता है। किसी भी कार्य का परिणाम कैसा है ? वही मुख्यतया ध्यान में रखने का है। यदि परिणामों पर ध्यान नहीं रखा जाय तो कदम-कदम पर पापकर्मों का बंधन ही होता रहेगा तथा उनसे छुटकारा कदापि नहीं होगा श्राद्धविधि और धर्मसंग्रहादि अनेक ग्रन्थों में इसी बात की पुष्टि की गई है- धर्मसंग्रह के पृष्ठ 167 में लिखा हुआ है कि-"स्वगृहदीपश्व देवदर्शनार्थमेव देवाग्रे आनो* तोऽपि देवसत्को न स्यात् / पूजार्थमेव देवाग्रे मोचने तु देवसत्क एव, परिणामस्यैव प्रामाण्यात् / " / अर्थात्-अपने घरके दीपक को देवदर्शन के लिए ही प्रभु के आगे लाया गया हो फिर भी वह दीपक देवद्रव्यरूप अर्थात् देवसंबंधी नहीं गिना (माना) जाता