________________ ( 27 ) भी महसूस नहीं होती है / इतना होने पर भी कई महानुभाव उपयुक्त पाठ को आगे कर उसके अर्थ में 'चढ़ावा' 'बोली' वगैरह शब्दों की वृद्धि कर स्वपक्ष को मजबूत सच्चा करने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु ध्यान रखना चाहिए कि बोली के साथ में उपयुक्त पाठ का किसी प्रकार संबंध नहीं है क्योंकि उपयुक्त पाठ में जिन कृत्यों का उल्लेख है वे वार्षिक कृत्य हैं न कि दैनिक कृत्य / श्राद्धविधि के पंचम प्रकाश का यह पाठ है। उस प्रकाश के प्रारम्भ में ही लिखा हुआ है कि“उक्तं चातुर्मासिकं कृत्यम् / अथ वर्षकृत्यमुत्तराधनोत्तरगाथया चैकादशद्वारै राह" . अर्थात्-चातुर्मासिक कृत्य कहें अब गाथा के उत्तरार्ध से और तदनंतर की गाथा (डेढ गाथा) में ग्यारह द्वारों द्वारा वार्षिक कृत्य कहे जाते हैं। उपयुक्त पाठ वैसे भी बोली या चढ़ावे का नाम भी नहीं है अतः दोनों तरह से यह पाठ बोली के प्रसंग में उपयोगी नहीं है। मैं उपयुक्त पाठ में जो कुछ बताना चाहता हूं वह यह है, कि-उपयुक्त कार्यों का द्रव्य-वस्तुएँ पहले देवद्रव्य में ले जाते थे, परन्तु आजकल उसमें बहुत परिवर्तन हो गया है। यह प्रत्यक्ष दिखाई देता है। अरे ! उनमें से कई रिवाजों का तो नामो- . निशान भी नहीं रहा।