________________ ( 15 ) बोली कम और जहाँ भाव कम वहाँ बोली ज्यादा / इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भाव बढ़ाने से भी समस्या हल हो जाय वह भी दुष्कर ही है अतः ऐसी निरर्थक कल्पनाएँ करने के बजाय बोली का सभी द्रव्य साधारण खाते में ही ले जाया जाय तो इसमें परेशानी ही क्या है ? और क्या बुराई है ? वास्तविक बात को लोगों को बताने में संकोच भी नहीं करना चाहिए। जिस खाते से सभी क्षेत्र पुष्ट होते हो, उस खाते को सम्पूर्णतया पोषने में क्या बाधा है और इस प्रकार का उपदेश देने में भी क्या दोष है ? यदि किसी प्रकार का शास्त्रीय व्यवधान नहीं हो। तो फिर सत्य बात बताने में विषम मार्ग की खोज करने से क्या लाभ ? 'परम्परा'-'परम्परा, करके जैसा चलता है वैसा ही चलने देना. यह क्या उचित हैं ? परम्परा भी अलग-अलग गाँवों और शहरों की अलग-अलग दिखाई देती है। तब क्या ये परम्पराएँ शास्त्रीय हैं ? यदि ये परम्पराएँ शास्त्रीय नहीं होकर काल्पनिक ही है तो उन काल्पनिक कल्पनाओं को बदलने में संकोच भी किस बात का ? समयानुसार अवश्यमेव परिवर्तन होना ही चाहिये / धर्माचार्यों का धर्म है कि सत्य को नहीं छुपाना चाहिए। यथार्थ को जनता के समक्ष प्रकट करना चाहिए। उदासीनवृत्ति में रहने से अब काम नही