________________ थी। अब ऐसा कारण नहीं रहने के कारण एवं कितनी ही दूसरी परिस्थितियां खड़ी होने के कारण उन-उन बोलियों का द्रव्य 'साधारण खाते' में ले जाने का श्री संघ निर्णय करे तो निःसंकोच कर सकता है तथा इस समय में ऐसा करने की आवश्यकता भी दिखाई देती है। इसी प्रकार पूजा, वरघोड़ा, आरती, स्नात्रमहोत्सव, स्वप्न, पालना एवं ऐसी अन्य बोलियों का कारण भी उपयुक्त कथनानुसार प्रत्येक का समाधान समझ लेना तथा उन-उन बोलियों से प्राप्त द्रव्य का व्यय समयानुसार भिन्न-भिन्न शुभमार्गों में हो सकता है और इसी कारण से वर्तमान में भी प्रतिस्पर्धा से बोली जाने वाली बोलियाँ के * द्रव्य को 'साधारण द्रव्य' के रूप में कल्पित किया ( मान लिया ) जाय तो वह आवश्यक और प्रशस्त भी है। इससे किसी को को ऐसा भयरखने की आवश्यकता नहीं है कि इस प्रकार की बोलियों के द्रव्य को साधारण खाते में कैसे ले जा सकते हैं? क्यों कि पहले ही कहा जा चुका है कि देव को अर्पण बुद्धि से अपित वस्तु ही देवद्रव्य के नाम से कहीं जाती है अन्य नहीं / उदाहरण स्वरूप जब देवाधिदेव की आँगी रचाई जाती है तब लाखों रुपयों के आभूषण और जवाहरातादि लोग भगवान के अंग पर चढ़ाते हैं और दूसरे दिन पुनः अपने-अपने घर ले जाते हैं इस रहस्य को