________________ किसी भी धार्मिक कृत्य में क्लेश न हो / गृहस्थ लोग पूजा करने जाते हैं उस समय यह प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रथम पूजा कौन करे ? कभी-कभी तो झगड़े भी हो जाते हैं / इन रगड़े-झगड़ों के बचाव हेतु और बलवान निर्बल को धनवान् निर्धन को तथा विद्वान् अज्ञानी को दबाने का प्रयत्न न करें, इसीलिए श्री संघ ने ऐसा निर्णय किया कि जो सबसे ज्यादा बोली(घी)बोलेगा वह प्रथम पूजा करेगा (इसी प्रकार आरती आदि दूसरे प्रसंगों पर भी समझ लेना) तथा 'उन - उन बोलियों का घी (द्रव्य) 'देवद्रव्य' के खाते में जायेगा / यह सिर्फ संघ की कल्पना मात्र है। शास्त्रीय आज्ञा नहीं है। उसी का यह कारण है कि प्रत्येक ग्राम या शहर में एक ही प्रकार का नियम (रिवाज) नहीं है / किसी गाँव में घी का भाव बीस रुपएं मण है, तो कहीं 15 रुपए मण है। किसी गाँव में 5 रुपए मण तो कहीं ढाई रुपए मण ही है। कहीं-कहीं सवा रुपए मण भी घी का भाव देखने में आता है। अर्थात् जिस गांव या शहर में वहाँ के संघ को जैसा भी उचित लगा वैसा नियम बना लिया। इस कल्पना के विषय में ऐसा तो किसी प्रकार का तत्व दृष्टिगोचर नहीं होता है जिसका 'देवद्रव्य' के साथ किसी प्रकार का संबंध हो। यह तो सिर्फ संघ की ही कल्पना थी तथा वह कारण विशेष को लेकर ही