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________________ ( 118 ) प्रकार का अर्थ कही भी नहीं मिलता है। एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि प्रस्तुत प्रकरण में 'उत्सर्पण' का अर्थ उल्लंघन घटित नहीं होता है क्योंकि 'द्रव्योत्सपण पूर्वक आरती उतारना' इसके स्थान पर 'द्रव्य के उल्लंघन पूर्वक आरती उतारना' यह विपरीत अर्थ कैसे कर सकते हैं ? 'द्रव्य के उल्लंघन पूर्वक- द्रव्य के अतिक्रमण पूर्वक आरती उतारना' हो ही नहीं सकता है किन्तु द्रव्य के संबंधपूर्वक ही आरती उतारी जाती है / यह तो एक बच्चा भी समझ सकता है। .. 'ऊर्ध्वगमन' 'अग्रगमन' अर्थ भी प्रस्तुत प्रकरण में घटित नहीं होता है। कदाचित् उन शब्दों को वृद्धि के अर्थ में ले तो भी कुछ हानि नहीं है और उत्सृपधातु का सामान्यतया 'वृद्वि' अर्थ ही सर्वत्र प्रचलित है। देखिए "वृद्ध यर्थे कथिता वृद्धवर्धते तद्वदेधते / ऋध्नोति ऋद्ध यते द्वे च स्फायते चोपचीयते // 64 // प्ररोहत विसरति प्रसरत्यतिरिच्यते / ... भृशायते तथा मूच्र्छत्युत्सर्पति विसर्पति // 65 // -क्रियाकलाप युग्मम् ऊपर गिनाये 'वृत यर्थक' धातुओं में 'उत्सर्पति' धातु भी है, परन्तु इस प्रकार उत्सृप् धातु का वृद्धि अर्थ
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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