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________________ ( 106 ) कृत उत्सृप् धातु से, इन दोनों प्रकारों में से पहले प्रकार का 'उत्सर्पण' शब्द प्रस्तुत प्रकरण में घटित नहीं होता है, अतः दूसरे प्रकार का 'उत्सर्पण' शब्द यहाँ समझना चाहिये। सिर्फ 'उत्सप्' धातु का अर्थ जब 'जाना होता है तो उसका प्रेरक अर्थ भेजना, छोड़ना, डालना वगैरह होता है यह तो प्रत्यक्ष है / इससे प्रस्तुत प्रकरण . में अर्थ योजना बराबर होती है कि "द्रव्योत्सर्पण पूर्वक" अर्थात् द्रव्य रखकर-डालकर आरती उतारना चाहिये। अब बताइए, इसमें किसी प्रकार की बाधा है ? किसी प्रकार की खींचतान है। जब सीधा और सरल अर्थ बैठता है तो फिर 'बोली बोलकर' इस प्रकार के विषम अर्थ को करने की क्या आवश्यकता है ? जब सिर्फ उत्सृप् धातु का अर्थ. 'जाना' अर्थात् 'द्रव्य का जाना' अर्थ होता है, तब फिर उसका प्रेरक अर्थ 'द्रव्य का डालना' यही हो सकता है यह सुस्पष्ट है / इसमें विवाद की बात ही कहाँ रहती है ? इस प्रकार सुस्पष्ट व्युत्पत्ति से जब 'उत्सर्पण' शब्द का अर्थ 'डालना', 'रखना' होता है, तब इस विषय में अधिक प्रमाणों को खोजने की आवश्यकता नहीं रहती है। इसके अतिरिक्त 'उत्सर्पण' का अर्थ दान, त्याग, अर्पण आ द भी होते हैं। इस संबन्ध के
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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