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________________ अन्य क्षेत्रों में ले जा ही नहीं सकते हैं", परन्तु उनसे यह तो बन नहीं सका। तब क्या सिर्फ इस प्रकार के वचन : 'मैं सच्चा और तू झूठा' कहने से कोई सच्चा या झूठा हो सकता है ? / 'निर्णय' लेख प्रकट होने के पश्चात् श्री विजय धर्मसूरिजी महाराज के अनेक लेख एवं पत्र प्रकाशित हुए। उनमें उन्होंने अपने विचारों के प्रतिपादन के साथ यह भी बताया कि यदि मैं शास्त्रीय दृष्टि से भूल करता हूं और मेरी गलती को कोई प्रमाणपुरस्सर प्रकट करेगा तो गलती को निःसंकोच स्वीकार करूगा अन्यथा मेरे प्रतिवादो महाशय को अपना प्रतिवाद वापस ले लेना चाहिए। इस प्रकार के अनेक लेख श्री विजय धर्मसूरिजी महाराज के प्रकट होते रहे, परन्तु आनन्दसागर जी महाराज ने तो उन लेखों का प्रत्युत्तर देने की बजाय मौन ही धारण कर लिया। आखिर जब श्राद्धविधि का पाठ उन्होंने देखा, तब सहर्ष उस पाठ को पेम्पलेट में प्रकट करके, अपने विजय के हाव-भाव बताने लगें। इतना ही नहीं, परन्तु श्री धर्मसूरिजी महाराज को क्षमा माँगने के लिए भी सूचित किया गया / यह पेम्पलेट दिनाङ्क 18-4-20 को प्रकट हुआ और उस लेख का . शीर्षक "श्रीमान् धर्म विजय जी को अपनी प्रतिज्ञा
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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