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________________ (68 ) क्या है ? और साथ - साथ भिन्नविचार वालों के साथ शास्त्रार्थ करके अथवा शास्त्रीय प्रबल प्रमाणों से उनके विचारों को असत्य सिद्ध किये बिना ही 'उत्सूत्र भाषी' और 'निह्नव' का कलंक देना, यह सिर्फ बालचेष्टा नहीं तो और क्या है ? मैं तो अब भी उद्घोषणापूर्वक कहता हूँ कि जब तक शास्त्रीय प्रमाणों द्वारा मेरे विचारों को असत्य सिद्ध नहीं किया जाता तब तक मैं अपने विचारों का लेखों और उपदेश द्वारा प्रतिपादन करता ही रहूंगा, क्योंकि जानते हुए भी सत्य बात को छिपाना, मैं थाप समझता हूं। सत्य बात को प्रकट करने में किसी भी प्रकार का दाक्षिण्यभाव, शर्म या संकोच रखना अनुचित है। अतः लोग मेरे विचारों को माने या न माने, इसकी परवाह किये विना, मैं अपने विचारों को जनता के समक्ष रखना, अपना कर्तव्य समझता हूँ। इस प्रकार के कार्य में उमास्वाति महाराज के सुभाषिता - नुसार कल्याण ही मानता हूँ____ “न भवति धर्मः श्रोतुः सर्वस्यैकान्ततो हितश्रवणात् / बुदतोऽनुग्रहबुद्ध या वक्तुस्त्वेकान्ततो भवति / " अर्थात्-हितकारी वचन श्रवण करने से सभी श्रोताओं को एकान्ततः धर्मलाभ नहीं होता है, किन्तु फिर भी उपकार बुद्धि से बोलने वाले वक्ता को तो निश्चय कल्याणलाभ होता है।
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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