________________ (16) बोली के द्रव्य को साधारण खाते में ले जाने के बारे में मैंने जो विचार समाज के समक्ष प्रस्तुत किये हैं, उनमें मैंने कहीं पर भी भूल नहीं की है फिर भी यदि कोई शास्त्रीय प्रमाणों से मेरे विचारों को असत्य प्रमाणित कर दे, तो अब भी मैं अपने विचारों में परिवर्तन करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करूंगा। सज्जनों ! मैं क्या कह रहा हूं उस पर विचार करें। मुझे उन महानुभावों पर अत्यन्त भावदया उत्पन्न होती है जो "मैं देवद्रव्य को उड़ा देना चाहता हूं", "देवद्रव्य दूसरों को खिला देना चाहता हूं" और "देवद्रव्य की आमदनी को बन्द कर मन्दिरों और मूर्तियों को उत्थापन करना चाहता हूं।" इस प्रकार के मुझ पर असद्भूत आक्षेपों को लगाकर दूसरों के मनमें मेरे प्रतिअसद्भावना उत्पन्न करना चाहते हैं परन्तु मेरी पत्रिका ओं को जिन्होंने ध्यानपूर्वक पढ़ी होगी, उन्हें पूर्णतया विश्वास हो गया होगा कि देवद्रव्य का मैं एकदम पक्षपाती हूं और देवद्रव्य के धिक्कारकर्ताओं का कट्टर विरोधी हूं। इतना ही नहीं, परन्तु देवद्रव्य की समुचित रूप से वृद्धि का भी पूर्णतया हिमायती हूं। . इस सम्बन्ध में मैंने अपनी तृतीय पत्रिका में बहुतबहुत विवेचन कर दिया है। उत्तमोत्तम वस्तुओं को भण्डार