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________________ "आचार्य हेमचन्द्र के कारण ही गुजरात श्वेताम्बरियों का गढ़ बना तथा वहाँ १२-१३वीं शताब्दी में जैन साहित्य की विपुल समृद्धि हुई। xxx वि. सं. 1216 में कुमारपाल पूर्णतया जैन बना।" ___-विन्टरनित्ज - हिस्ट्रीप्रकरण / ऑफ इंडियन लिटरेचर भाग 2 पृ. 482-83, 511 "संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का और श्री हर्ष के दरबार में बाणभट्ट का है, प्रायः वही स्थान ईसा की बारहवीं शताब्दी में चौलुक्य वंशोद्भव सुप्रसिद्ध गुर्जर नरेन्द्र शिरोमणि सिद्धराज जयसिंह के इतिहास में हेमचन्द्र का है।" _ - पं. शिवदत्त : नागरी प्रचारिणी पत्रिका का भाग 6, सं. 4, - श्री कन्हैयालाल मा. मुंशी ने इनकी प्रतिभा को सम्मान देते हुए उचित ही कहा है - "इस बाल साधु ने सिद्धराज जयसिंह के ज्वलन्त युग के आंदोलनों को झेला / कुमारपाल के मित्र और प्रेरक पद प्राप्त किया। गुजरात के साहित्य का नवयुग स्थापित किया। इन्होंने जो साहित्यिक प्रणालिकाएँ स्थापित की, जो ऐतिहासिक दृष्टि व्यवस्थिति/विकसित की, एकता की बुद्धि निर्मित कर जो गुजराती अस्तिमा की नींव डाली, उस पर आज अगाध आशा के अधिकारी ऐसा एक और अवियोज्य गुजरात का मंदिर बना है।" - धूमकेतु : श्री हेमचन्द्राचार्य, पृ. 158 का अनुवाद। "आज गुजरात की प्रजा दुर्व्यसनों से बची हुआ है, उसमें संस्कारिता, समन्वय धर्म, विद्यारुचि, सहिष्णुता, उदारमतदर्शिता आदि गुण दृष्टिगत होते हैं, साथ ही भारतवर्ष के इतर प्रदेशों की उपेक्षा गुजरात की प्रजा में धार्मिक जुनून आदि दोष अत्यल्प प्रमाण में दृष्टिगत होते हैं तथा समस्त गुजरात की प्रजा को वाणी/बोली प्राप्त हुई है, वह सब भगवान श्री हेमचन्द्र और उनके जीवन में तन्मयीभूत सर्वदर्शनसमदर्शिता की ही आभारी है।" मुनि पुण्यविजय : श्री हेमचन्द्राचार्य, प्रस्तावना, पृ. 12 "किन्तु, जैसे शिवाजी रामदास के बिना, विक्रम कवि कुलगुरु कालिदास के बिना और भोज धनपाल के बिना शून्य लगते हैं वैसे ही सिद्धराज और कुमारपाल साधु हेमचन्द्राचार्य के बिना शून्य लगते हैं। जिस समय में मालवा के पण्डितों ने भीम के दरबार की सरस्वती परीक्षा की, उसी समय से ही यह अनिवार्य था कि गुजरात की पराक्रम लक्ष्मी, संस्कार लक्ष्मी के बिना जंगली लोगों की बहादुरी जैसे अर्थहीन लगती है। इसे स्वयं का संस्कार-धन सँभालने का रहा।" "सिद्धराज जयसिंह को हेमचन्द्राचार्य नहीं मिले होते तो जयसिंह की पराक्रम गाथा आज वाल्मीकि के बिना ही राम कथा जैसी होती और गुजरातियों को स्वयं की महत्ता देखकर प्रसन्न होने का तथा महान होने का आज जो स्वप्न आता है, वह स्वप्न कदाचित् नहीं आता। हेमचन्द्राचार्य के बिना गुजराती भाषा के जन्म की कल्पना नहीं की जा सकती, इसके बिना वर्षों तक गुजरात को जाग्रत रखने वाली संस्कारिता की कल्पना नहीं की जा सकती, और इनके बिना गुजराती प्रजा के आज के विशिष्ट लक्षणों - समन्वय, विवेक, अहिंसा, प्रेम, शुद्ध सदाचार और प्रामाणिक व्यवहार प्रणालिका की कल्पना नहीं की जा सकती। हेमचन्द्राचार्य मानव के रूप में महान थे, साधु के रूप में अधिक महान थे, किन्तु संस्कारद्रष्टा की रीति से ये सबसे अधिक महान थे। इन्होंने जो संस्कार जीवन में प्रवाहित किए, इन्होंने जो भाषा प्रदान की, लोगों को जिस प्रकार बोलना/बोलने की कला प्रदान की, इन्होंने जो साहित्य दिया, वह सब आज भी गुजरात की नसों में प्रवाहित है, इसीलिये ये महान गुजराती के रूप में इतिहास में प्रसिद्धि पाने योग्य पुरुष हैं।" 48 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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